२४ जून २०२० को महुआझाला (बिजावर), छतरपुर (म.प्र.) से एक मुस्लिम परिवार एक प्रौढ़ महिला को
निजी गाड़ी से लेकर आयुष ग्राम (ट्रस्ट)
चित्रकूट आये। गाड़ी से उतारकर
स्ट्रेचर में लादा फिर ओपीडी में आये। उनका ओपीडी रजिस्ट्रेशन नम्बर- के.ए.२६/३०
पर हुआ। रोगिणी का नाम था श्रीमती
कनीजा बेगम।
कनीजा बेगम के बेटे शेर
खाँ ने बताया कि- पाँच साल पहले इन्हें ब्लडप्रेशर और शुगर हुआ। ब्लडप्रेशर और
शुगर की दवायें चलती रहीं कि डेड़ साल पहले बायीं ओर पक्षघात हो गया। अब ग्वालियर, भोपाल में इलाज चलता रहा। ७ माह पहले सूजन और बुखार आने लगा, डॉक्टरों ने जाँच कराया तो बताया कि अब गुर्दे खराब हो गये।
१ साल पहले से हार्ट की भी समस्या हो गयी, उसकी भी दवायें चलती रहीं। भूख न लगना, पेशाब में कड़क, साँस फूलना, कब्ज, नींद की कमी, घबराहट, बेचैनी। बताया कि ये
ऑन बेड हैं, कुछ भी खा पी नहीं रहीं, कुछ बोल भी नहीं पा रही हैं।
प्रथम दृष्टया रोगिणी को
देखने पर सामान्यतया भ्रम की स्थिति हो रही थी कि चिकित्सा कहाँ से कैसे प्रारम्भ
की जाय, पक्षाघात
मानकर या किडनी फेल्योर देखकर या हृदय रोग की समस्या पर। आचार्य चरक बताते हैं कि
जब दो या दो से अधिक व्याधियाँ साथ में मिल जाती हैं तो ‘व्याधि संकर’ की स्थिति बन जाती है-
कश्चिद्धि
रोगो रोगस्य हेतुर्भूत्वा प्रशाम्यति।
न
प्रशाम्यति चाप्यन्यो हेत्वर्थं कुरुतेऽपि च।।
एवं
कृच्छ्रतमा नृणां दृश्यन्ते व्याधिसंकरा:।
प्रयोगापरिशुद्धत्वात्
तथा चान्योन्य सम्भवात्।।
च.नि.
८/२२।।
कोई रोग दूसरे रोग को
जन्म देकर स्वयं शान्त हो जाता है तथा कोई रोग ऐसा होता है कि दूसरे रोग को
उत्पन्न कर देता है और स्वयं शान्त नहीं होता। इस प्रकार सही चिकित्सा और उचित
चिकित्सा न होने के कारण और एक रोग दूसरे रोग की उत्पत्ति होने के कारण ‘व्याधि संकर’ की उत्पत्ति होती है, ऐसे रोग बहुत ही कष्टसाध्य होते हैं।
जहाँ अभी तक अंग्रेजी
अस्पताल किडनी फेल्योर/बढ़े यूरिया, क्रिटनीन का अभिसंधान करके डायलेसिस कर और पृथक्-पृथक् रोग
लक्षणों की अंग्रेजी दवाइयाँ चला रहे थे जिससे रोगी लगातार अपाहिज, अपंग और लाचार होता जा रहा था वहीं हमने आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट में दोष, दूष्य आदि सम्प्राप्ति घटकों को ध्यान में रखकर रोग के तह तक पहुँचने का
प्रयास किया, परिणाम यह
हुआ कि रोगी अपाहिज, लाचारी और
अपंगता से उठ गया।
हमने परीक्षण
और सम्प्राप्ति घटकों को तलाशते समय देखा कि श्रीमती कनीजा में रोग और अंग्रेजी
दवा के कारण-
✒️ वात प्रधान तीनों दोष
असंतुलित हैं।
✒️ दूष्य-
रस, रक्त, मांस, मेद, नाड़ी संस्थान जिससे प्रमेह (मधुमेह), हृदय
विकार, वृक्कामयता (किडनी फेल्योर) और पक्षाघात
हुआ।
✒️ स्रोतस् दुष्टि पायी गयी- रसवह, रक्तवह, मांसवह, मेदवह
और प्राणवह।
✒️ संग, अतिप्रवृत्ति और विमार्गगमन प्रकार से स्रोतोदुष्टि हुयी।
✒️ अग्नि
हो गयी- विषमाग्नि, तभी कभी कब्ज, कभी शौच, कभी भूख, कभी क्षुधाहानि।
✒️ रोग कृच्छ्रसाध्य/याप्य हुआ।
माधवनिदानकार बताते हैं कि-
दाहसन्तापमूच्र्छा:
स्युर्वायौ पित्तसा मन्विते।
शैत्य शोथ
गुरुत्वानि तस्मिन्नेव कफान्विते।।
मा.नि.
२२/४२।।
यदि शीतांगता, शोथ (Odema) एवं भारीपन लक्षण पक्षाघात में हो तो कफ का अनुबन्ध होता था
तभी तो हमने पीछे लिखा कि सम्प्राप्ति घटकों में वातप्रधान त्रिदोष की स्थिति बन
रही थी।
ऐसे रोगों में ‘दोष’ तियर्क मार्गों में चले गये होते हैं जिससे वे रोगी के शरीर लम्बे
समय तक घर बनाये रखते हैं। चिकित्सक को चाहिए कि वह शरीर, पाचकाग्नि, बल इनकी क्रियाओं का परीक्षण करे और चिकित्सा में जल्दबाजी न करे यानी क्रमश:
उपचार करे। दोषों को चिकित्सा द्वारा
क्षीण करे अथवा उन्हें अनुलोम कर कोष्ठ में लाये, जैसे-जैसे रोग पैदा करने वाले कारक कोष्ठ में आते जायें
उन्हें समीप के मार्ग से निर्हरण करे।
इस सिद्धान्तानुसार हमने
निम्नांकित चिकित्सा व्यवस्था विहित की-
✒️ त्रिकटु
दशमूल कषाय १५ मि.ली. उबालकर ठण्डा किया जल १५ मि.ली.।
✒️ महामृगांक रस और माहेश्वर वटी १-१ ग्राम, योगराज गुग्गुल १० गोली, शिवा गुटिका ८ ग्राम, प्रवालपंचामृत मु.यु. १० ग्राम सभी घोंटकर २४ मात्रा। १-१ मात्रा दिन में २
बार। स्वर्णवातगजांकुश १-१ गोली दिन में २ बार दोपहर व रात।
✒️ शुण्ठीबलादि
कषाय, पुनर्नवादि कषाय और बृहत्यादि
कषाय १५-१५ मि.ली. ठण्डा किया जल बराबर मात्रा में।
पंचकर्म चिकित्सा में, मुस्तादि
यापन बस्ति क्रम से, अन्त: स्नेहन पंचतिक्त घृत
गुग्गुल से, स्नेह पाचन पर्याप्त दिन बीत
जाने पर,
बाह्य स्नेहन, कटिपिचुधारण, कटिबस्ति, वृक्कस्वेद, श्रोणि
बस्ति।
✒️ आहार
में दोषानुलोमिनी पेया, मण्ड, मुद्गयूष
आदि।
ऐसे रोगों की चिकित्सा में आचार्य
चरक के दो सिद्धान्त ध्यातव्य हैं-
स्वे
स्थ्ज्ञाने मारुतोऽवश्यं वर्धन्ते कफसंक्षये।
स वृद्धि:
सहसा हन्यात्तस्मान्तं त्वरया जयेत्।।
वातस्यानुजयेत्
पूर्वं पित्तं पित्तस्यानुजयेत् कफम्।
त्रयाणां
वा जयेत् पूर्वं यो भवेद् बलवत्तम:।।
च.चि.
१९/१२१-१२२।।
यानी यदि कफ का क्षय हो
जाय तो पक्वाशय में वायु निश्चित
प्रकुपित होने लगती है, सहसा बढ़ी हुयी वायु रोगी के प्राण तक नष्ट कर देती है, इसलिए वायु को शीघ्रता से जीतना चाहिए। भ्रम न पालें कि
आयुर्वेद चिकित्सा फायदा नहीं तो नुकसान नहीं करती ‘व्याधि संकर’ या सन्निपातिक रोगों में सबसे पहले ‘वात’ को जीतना
चाहिए, उसके बाद
पित्त को फिर कफ-दोष को अथवा अंशाश कल्पना
कर अच्छी तरह निदान करके यह पहचान करें कि कौन सा दोष बलवान् है तो पहले उसे
जीतें।
उपर्युक्त चिकित्सा अपने स्निग्ध, उष्ण, अनुलोमन, वृंहण, पोषण गुण से वात प्रधान त्रिदोष को संतुलित करने वाली बनती है।
――――――――――――――――――――――――――――――――――――――
आप विश्वास करें और
श्रीमती तनीजा बेगम के बेटे शेर खाँ की जबान से सुनें भी कि लम्बे समय से ऑन-बेड महिला चौथे दिन ही बिस्तर से उठकर
बैठने लगी और पहले सप्ताह में एक साधारण सहारा देने पर चलने लगीं। सभी में प्रसन्नता की लहर
दौड़ गयी। आयुष ग्राम चिकित्सालय
स्थायी स्टॉफ ६० लोगों का है ऐसे केसों की सफलता का समाचार बिजली की तरह दौड़ जाता
है।
चिकित्सा और पंचकर्म थैरेपी चलती
रही,
१५ दिन में तो श्रीमती कनीजा ऐसी हो गयीं
जैसे ३ साल पहले थीं।
धीरे-धीरे यूरिया, क्रिटनी भी घटने लगा। जिस महिला को उसके बेटे और आदमी
स्ट्रेचर में लादकर तीन सप्ताह पहले आयुष ग्राम चित्रकूट लाये थे उसी
महिला को उसके आदमी व बेटे चलाकर लेकर आ गये। जाते-जाते उन्होंने अपनी जबान से जो
कहा वह लिखा भी जा रहा है और वीडियो में भी है।
अंग्रेजी
चिकित्सा ने स्ट्रेचर दिया : आयुष चिकित्सा ने अपने पैरों से चलाया २१ दिन में!!
हम महुआझाला
(बिजवार), छतरपुर
(म.प्र.) से हैं। मेरी माँ कनीजा बेगम (५१ वर्ष) ५ साल से ब्लडप्रेशर व सुगर की
अंग्रेजी दवायें खाती रहीं और अंग्रेजी इलाज चलता रहा।
डेढ़ साल पहले एक दिन मेरी
माँ के बायें अंग ने अचानक काम करना बन्द कर दिया, पूरे शरीर में सूजन आ गयी, हम लोग तुरन्त माँ को ग्वालियर के जीवन श्री हॉस्पिटल ले गये, वहाँ पर सारी जाँचें कीं और ५ दिन इमरजेन्सी में रखा गया
ऑक्सीजन लगा ही रहा, पर कुछ आराम
नहीं मिला, जबकि २
डायलेसिस भी कर दी गयीं। हम परेशान हो गये कि रोज ३० हजार के हिसाब से मेरा डेढ़
लाख रुपये खर्च हो गये और एक भी आराम नहीं मिला।
फिर मैं अपनी माँ को ग्वालियर
से भोपाल के हमीदिया हॉस्पिटल (सरकारी) में ले गये, वहाँ पर फिर जाँचें हुयीं, फिर डॉक्टरों ने बताया कि इन्हें पैरालायसिस (लकवा) हुआ और
हार्ट, किडनी की भी
समस्या है। ग्वालियर में माँ को १ माह तक भर्ती रखा २ डायलेसिस भी कीं।
१ माह बाद घर आये पर माँ
को पहले से भी ज्यादा समस्यायें होने लगीं, मैं फिर से अपनी माँ को भोपाल लेकर पहुँचा वहाँ पर कोरोना
के मरीज होने के कारण अच्छे से मेरी माँ को नहीं देखा गया। तभी बिजावर के डॉक्टर रमेश गुप्ता जी ने मुझे दिव्य
चिकित्सा भवन, पनगरा, बाँदा के बारे में जानकारी दी। मैं दूसरे दिन ही अपनी माँ को लेकर दिव्य चिकित्सा भवन, पनगरा, बाँदा पहुँचा। वहाँ पता चला कि अब दिव्य
चिकित्सा भवन में केवल ओपीडी होती है और आईपीडी यहाँ की शाखा आयुष ग्राम चित्रकूट
में किया जा रहा है। मैं वहाँ से सीधे आयुष ग्राम चित्रकूट पहुँचा। वहाँ बहुत
मरीज थे, मेरा २ बजे
नम्बर आया मुझे ओपीडी-२ में (डॉक्टर वाजपेयी जी के पास) बुलाया गया, उन्होंने अच्छी तरह से देखा, कुछ जाँचें करवायीं, जाँच आने के बाद उन्होंने कहा कि आप यहाँ पर ३ हफ्ते यहाँ
रखें मैं आपकी माँ को चला दूँगा। यह सुनकर हमें सपना जैसा लगा कि लकवा, हार्ट, किडनी रोग में फँसी मेरी माँ को चला देंगे।
जब मेरी माँ यहाँ आई थी, उस समय वह बिल्कुल ऑन बेड थीं, कुछ खा-पी नहीं पा रहीं थीं न ही बिल्कुल बोल पा रहीं थी, श्वास बहुत फूलती थी, जाने कितनी अंग्रेजी दवायें खाने पर भी कोई आराम नहीं था। उन्होंने मेरी माँ को तीन हफ्ते भर्ती रखा। चिकित्सा शुरू हुयी, पंचकर्म होने लगा। भोजन में पाचनशक्ति के अनुसार केवल गोदुग्ध पीने को दिया
जाता रहा। नर्सें, डॉक्टर
समय-समय पर आते, देखते, दवा उपचार देते। भर्ती होने के ३ दिनों में मेरी माँ को बिल्कुल आराम नहीं
मिला तो मैंने मन में सोचा कि लगता है न ठीक होंगी क्या?
पर आयुष
ग्राम ट्रस्ट सस्ता अस्पताल है रोज खर्च केवल १५०० के आस-पास सब कुल। सोचा कि इससे
सस्ता अस्पताल तो मिलना नहीं और जो यहाँ रोगी भर्ती थे उनके रिजल्ट देखकर आशा हो
रही थी। नर्सों ने भी मुझे आश्वासन दिया कि आप परेशान न हों।
मेरी माँ को चौथे दिन से
लगातार आराम मिलने लगा, आज ३ हफ्ते
हो गये हैं इस समय मेरी माँ को ७०% से अधिक लाभ है, जो पहले उठकर बैठाने से अपने आप गिर जाती है वह आज अपने से
चल लेती हैं, टट्टी, पेशाब, मंजन, स्नान कर लेती हैं, वह बोलने लगी भूख नींद भी अच्छी हो गयी, और हमें क्या चाहिए।
आज १ माह की दवायें देकर
डिस्चार्ज किया जा रहा है, मैं बहुत खुश
हूँ कि जहाँ मैं बिल्कुल आशा छोड़ चुका था कि मेरी माँ कभी पहले जैसे हो भी पायेंगी, लेकिन आयुष ग्राम
की आयुष चिकित्सा व पूरे स्टॉफ व डॉक्टर वाजपेयी जी की मेहनत, गाइड लाइन ने वह कर दिखाया जिसकी उम्मीद नहीं थी। इस समय
मेरी सभी अंग्रेजी दवायें भी बन्द हैं सिर्फ ब्लडप्रेशर की कभी-कभी लेनी पड़ती है।
मेरा पूरा परिवार खुश है कि जैसा
डॉ. वाजपेयी जी ने कहा था कि तीन हफ्तों में चलने लगेंगी तो सच में ऐसा ही हुआ।
- शेर खाँ, महुआझाला (बिजवार), जिला- छतरपुर
(म.प्र.)
सोचने की बात है कि देश
की आजादी के इतने सालों बाद भी आयुष
चिकित्सा जन-जन तक नहीं पहुँच पा रही है अन्यथा कनीजा जैसे रोगी भटकने को मजबूर न
होते। श्रीमती कनीजा बेगम के लड़के ने बताया कि हमारा २ एकड़ खेत बिक गया कई लाख खर्च
हो गये और तब भी हमारी माँ लाचार, अपाहिज का जीवन जीने के लिए मजबूर थी। आयुष ग्राम चित्रकूट की चिकित्सा से कितने सस्ते में चलने लगीं, अपना काम करने लगीं।
ऐसे में आप सभी का कर्तव्य बनता है कि जन-जन तक आयुष चिकित्सा को पहुँचायें और मानव का कल्याण करें। अब नई-नई दवाइयाँ आ गयीं, अब आयुष में रोज नये अनुसंधान और प्रयोग हो रहे हैं, अब आयुष चिकित्सा बिना ऑपरेशन, हार्ट, मस्तिष्क, किडनी रोगियों को सस्ते में जीवन लाभ प्रदान कर रही है, अत: आप सभी का दुनियाँ के भटकाव से मुक्त करें।
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी
इनके शिष्यों, छात्र, छात्राओं की लम्बी सूची है । आपकी चिकित्सा व्यवस्था को देश के आयुष चिकित्सक अनुसरण करते हैं ।
आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
आयुष ग्राम चिकित्सालय:, चित्रकूट

प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव और आयुष ग्राम मासिक
पूर्व उपा. भारतीय चिकित्सा परिषद
उत्तर प्रदेश शासन
डॉ परमानन्द वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य
0 Comments