डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी
कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझती दुनिया कितने गंभीर संकट
से दो-चार है। दुनिया का शायद कोई ऐसा देश हो जो इस वायरस के चपेट में न हो, दुनिया में
कोरोना से संक्रमित लोगों का आँकड़ा १५ लाख और इससे हुयी मौतों का आँकड़ा ९० हजार
पार कर गया। अंग्रेजी चिकित्सा विज्ञान (एलोपैथी) पूरी तरह से हाथ खड़े कर चुकी, इसका न कोई
अभी तक टीका सामने आया, न कोई प्रामाणिक दवाई। किसी भी एण्टीबायोटिक दवाई का असर
नहीं हो रहा। ले-देकर एक दवा
हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीनीन की चर्चा हुयी पर यह भी दुष्परिणाम आया कि यह दवा दिल
की बीमारी का खतरा बढ़ा रही है।
अब विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
मंत्रालय की मदद से फिलहाल भारतीय वैज्ञानिक एक ऐसा लोशन तैयार करने में जुटे हैं जो कोरोना वायरस को नाक के रास्ते शरीर के अन्दर दाखिल होने
से रोकेगा। इसे नाक के अन्दर लगाना
होगा। इस पर आईआईटी बाम्बे का जैव विज्ञान और जैव इंजीनियरिंग विभाग तेजी से काम
कर रहा है। कहना है कि इसे शुरुआती चरण में काफी सफलता भी मिली है। पूरे शोध में
आगे ९ माह लगने की संभावना है। केन्द्रीय
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव प्रोफसर आशुतोष शर्मा कह रहे हैं कि कोरोना के संक्रमण का सबसे अधिक खतरा मौजूदा
समय में नाक के रास्ते वायरस के प्रवेश से है इसी के जरिए वह सीधे गले और बाद
में फेफड़े तक पहुँचता है।
भारत में लगभग पाँच हजार साल पहले महान् चिकित्सा वैज्ञानिक
महर्षि चरक हुये उन्होंने २९ घटक द्रव्यों को लेकर तेल आधारित (Oil Based) एक औषधि (Nesal Medicine) का आविष्कार किया, उसका प्रयोग
उन्होंने नाक के अन्दर किया और इस क्रिया को उन्होंने नस्य और प्रतिमर्श नस्य नाम दिया। महर्षि चरक ने पाया कि इस ‘प्रतिमर्श
नस्य’ का प्रयोग करने वाले को लाभ ही लाभ
मिलता है। यदि यह प्रयोग स्वस्थ व्यक्ति करे तो रोग प्रतिरोधक क्षमता की बढ़ोत्तरी
होती है परिणामत: रोगों से बचाव होता है।
उन्होंने
अपने शब्दों में लिखा-
‘अरोगाणां
प्रतिमर्श: स दाढ्रर्यकृत्।।’
च.सि. ९/११७।।
महर्षि चरक के बाद ईसा पूर्व लगभग
छठीं सदी में काशी में महर्षि
सुश्रुत हुये जिन्हें आज भी पूरी
दुनिया शल्य चिकित्सा (सर्जरी) का जनक कहती है। इन्होंने काशी नरेश दिवोदास
धन्वन्तरि जी से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने चरक के इस आविष्कार को आगे बढ़ाया और
इस पर आधारित विशिष्ट प्रयोग विधि भी ईजाद की। महर्षि सुश्रुत के प्रयोगानुसंधान
के बाद प्रतिमर्श नस्य की विधि जो प्रचलन में आयी वह इस प्रकार भी- तर्जनी अंगुली को एक पर्व तक अणु तैल में डुबोकर नासापुट
में लगाया जाय पर तेल को ऊपर न खींचा जाय। (ऊपर खींचने के लिए तो इस क्रिया के मूल
आविष्कारक चरक ने ही वर्जित कर दिया था।)
भारत में हुये महर्षि सुश्रुत ऐसे
महान् शल्य वैज्ञानिक थे जिन्होंने प्लास्टिक सर्जरी का आविष्कार तक किया, कटे-टूटे
अंगों का जोड़ना, कटे नाक तक को जोड़ने में उन्हें पूरी महारथ थी। सभी राजाओं
में उनका अच्छा सम्मान था वे स्वयं राजशिष्य थे ही। उन्होंने इस (प्रतिमर्श नस्य)
क्रिया को तत्कालीन भारत में चौदह अवसरों पर प्रयोग करना ठीक वैसा लागू कराया जैसा आज की सरकारें मास्क लगाना अनिवार्य कर चुकी हैं। इसका प्रमाण सुश्रुत संहिता आज
भी दे रही हैं-
‘‘प्रतिमर्शश्चतुर्दशसु
कालेषूपादेय: तद्यथातल्पोत्थितेन, प्रक्षालितदन्तेन, गृहान्निर्गच्छता
व्यायाम व्यवायाध्वपरिश्रान्तेन, मूत्रोच्चारकवलाञ्जनान्ते
भुक्तवता, छर्दितवता, दिवास्वप्नोत्थितेन
सायं चेति।।’’
सु.चि. ४०/५१
घर से बाहर निकलने के समय के लिए
उन्होंने एक चिकित्सीय नियम साधा कि दोनों नासापुटों में प्रतिमर्श नस्य किया ही
जाय इससे (‘‘नासास्रोत:
क्लिन्नतया रजो धूमो वा न बाधते।।’’ सु.चि. ४०/५२।।) नाक की नली में गीलापन रहेगा जिससे रज (धूल/विषाणु/रोगाणु)
और दूषित वायु (धूम) आदि जिनसे शरीर के स्वास्थ्य को बाधा पहुँचती है वे पहुँच ही
नहीं पाते। वे नाक की नली में, नासा प्रवेश द्वार में ही चिपक जाते हैं और फिर निष्क्रिय
तथा निष्प्रभावी हो जाते हैं।
किन्तु विडम्बना यह है कि महर्षि
सुश्रुत को दुनिया शल्य चिकित्सा का जनक तो मानती है और दीवाली के पूर्व उनके गुरु धन्वन्तरि का पूजन भी करती है। इस पूजन कार्यक्रम में मंत्रीगण, अधिकारीगण भी शिरकत करते हैं। किन्तु महर्षि सुश्रुत के
आविष्कारों का लाभ दुनिया और भारत में कैसे
अधिक से अधिक पहुँचे इसके लिए कोई सार्थक, सबल प्रयास नहीं।
ध्यातव्य है कि कोरोना वायरस को नाक के
रास्ते शरीर के अन्दर दाखिल होने से रोकने के लिए जो आईआईटी बाम्बे द्वारा लोशन का
आविष्कार किया जा रहा है उसका रिसर्च पूरा होने में ही ९ माह लगने की संभावना है
तब तक पता नहीं क्या होगा?
जबकि भारत के आयुर्वेद ऋषि
सम्प्रदाय ने प्राकृतिक और सुरक्षित आविष्कृत एक औषधि मानव के कल्याण के लिए संसार
को सौंप रखी है, हमें केवल आश्चर्य चकित ही नहीं होना चाहिए बल्कि भारत के
आर्ष ज्ञान पर नतमस्तक होना चाहिए कि कोरोना जैसे विषाणु को रोकने के
लिए कोई ‘नेजल लोशन’ हो इस
पर हम आज तब सोच पाये हैं जब मानवता के सिर पर महासंकट मड़रा रहा है।किन्तु भारत और भारत के ऋषि सम्प्रदाय ने हजारों साल पहले
केवल सोचा ही नहीं था बल्कि आविष्कार कर दिया था साथ ही दुनिया को सौंपते वक्त लिख
भी दिया था कि-
नासा
स्रोत: क्लिन्नतया रजो धूमो वा न बाधते।। सु.चि. ४०/५२।।
अब हमें इस घनघोर संकट से उबरने के
लिए पहले संकीर्णता से उबरना होगा। सरकारों को तत्काल प्रभाव से ‘प्रतिमर्श
नस्य कर्म’ को लागू करना चाहिए भले
ही तब तक के लिए लागू करें जब तक कि ९ माह बाद कथित लोशन नहीं आ जाता। जिस दिन मैं
यह लेख लिख रहा था, उस दिन आँकड़ों सहित यह खबर तेजी से आ रही थी कि केरल में
कोरोना के इलाज में आयुर्वेद अपनाने के बाद मृत्यु दर में भी कमी आयी और रोगी
संख्यादर में भी कमी आयी। गोवा सरकार ने भी कोरोना के लिए आयुर्वेद ट्रीटमेण्ट
प्रारम्भ करा दिया।
जो भी हो पर भारत ऋषियों का देश है और यदि इसे स्वस्थ, समृद्ध, सुदृढ़, सुन्दर, सुखी, सुमन और सुबल
बनना है तो ऋषि परम्परा और विद्याओं का आश्रय ही लेना होगा। इत्यलम्
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी एक प्रख्यात आयुर्वेद विशेषज्ञ हैं। शास्त्रीय चिकित्सा के पीयूष पाणि चिकित्सक और हार्ट, किडनी, शिरोरोग (त्रिमर्म), रीढ़ की चिकित्सा के महान आचार्य जो विगड़े से विगड़े हार्ट, रीढ़, किडनी, शिरोरोगों को शास्त्रीय चिकित्सा से सम्हाल लेते हैं । आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूटधाम, दिव्य चिकित्सा भवन, आयुष ग्राम मासिक, चिकित्सा पल्लव और अनेकों संस्थाओं के संस्थापक ।
इनके शिष्यों, छात्र, छात्राओं की लम्बी सूची है । आपकी चिकित्सा व्यवस्था को देश के आयुष चिकित्सक अनुसरण करते हैं ।
डॉ. अर्चना वाजपेयी
डॉ. अर्चना वाजपेयी एम.डी. (मेडिसिन आयु.) में हैं आप स्त्री – पुरुषों के जीर्ण, जटिल रोगों की चिकित्सा में विशेष कुशल हैं । मृदुभाषी, रोगी के प्रति करुणा रखकर चिकित्सा करना उनकी विशिष्ट शैली है । लेखन, अध्ययन, व्याख्यान, उनकी हॉबी है । आयुर्वेद संहिता ग्रंथों में उनकी विशेष रूचि है ।
आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
आयुष ग्राम चिकित्सालय:, चित्रकूट
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.) एन.डी., साहित्यायुर्वेदरत्न,विद्यावारिधि (आयुर्वेद), एम.ए.(दर्शन),एम.ए.(संस्कृत), एल-एल.बी. (B.U.)
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव और आयुष ग्राम मासिक
पूर्व उपा. भारतीय चिकित्सा परिषद
उत्तर प्रदेश शासन
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव और आयुष ग्राम मासिक
पूर्व उपा. भारतीय चिकित्सा परिषद
उत्तर प्रदेश शासन
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
डॉ परमानन्द वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य
डॉ आर.एस. शुक्ल आयुर्वेदाचार्य
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