प्राचीन काल से ही
संहिताओं में कौमारभृत्य या ‘बाल चिकित्सा’ विभाग का
वैज्ञानिक चिकित्सीय वर्णन इस बात का प्रमाण देता है कि सम्पूर्ण आर्यावर्त में
आयुर्वेद का ऐसा विस्तृत स्वरूप था कि बच्चों के सम्पूर्ण स्वास्थ्य, उसे दीर्घायु बनाने, उसके मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक रूप से विकसित करने की महत्वपूर्ण
जिम्मेदारी आयुर्वेद के अधीन थी। किन्तु गत १००० वर्षों का ऐसा पतनकारी कालखण्ड
रहा कि आयुर्वेद में तत्त्वज्ञ, मर्मज्ञ, वैज्ञानिक
भिषग्जनों का अभाव सा हुआ, परिणामतः
आयुर्वेद चिकित्सा का भी अभाव होता गया और ऐसा समय आ गया कि बच्चों की चिकित्सा
आयुर्वेद या आयुष चिकित्सकों के हाथ से निकल कर वर्तमान एलोपैथिक चिकित्सकों के
हाथ में आ गयी। जिसका यह दुष्परिणाम आया कि बच्चे अल्पायु होने लगे, अकाल मौत के मुँह में जाने लगे, बच्चों का बौद्धिक, मानसिक, शारीरिक विकास कम पड़ने लगा, छोटे-छोटे बच्चे मिरगी, दौरा
(अपस्मार) जैसे रोगों के चंगुल में फँसकर जीवन भर के लिए मानसिक विकलांग होने लगे।
सामान्य ज्वरों तक में बच्चों में हाई एण्टीबायोटिक, पेन किलर का प्रहार कर उन्हें प्रतिरक्षातंत्र की क्षमताहीन
बनाया जाने लगा।
आज एलोपैथ इतना आडम्बर
युक्त हो गया है कि नवजात शिशुओं तक को सामान्य श्वासकृच्छ्रता में ‘नेमुलाइजर’ डाल रहे हैं, इन्हेलर थमा
रहे हैं, दुर्बलता में
टी.बी. की दवायें चला रहे हैं, जिसके भयावह दुष्परिणाम आ रहे हैं।
अब समय आ गया है बच्चों
को इस षडयंत्र से उबारकर आयुर्वेद की ओर ले जाने का।
घातक अतिसार से ग्रस्त बच्चे की सफल चिकित्सानुभव
दिव्य
चिकित्सा भवन और आयुष ग्राम चिकित्सालय चित्रकूट में किए प्रयोगों और शोधों से हम यह विश्वासपूर्वक कह सकते
हैं कि बच्चों की ऐसी सर्वोत्कृष्ट चिकित्सा आयुष पद्धति में है जिससे बच्चा
सम्बन्धित रोग से मुक्त तो हो ही जाता है उसके अलावा बच्चे का प्रतिरक्षा तंत्र
ऐसा सुदृढ़ हो जाता है तथा बच्चे का ऐसा शारीरिक और मानसिक संवर्धन होता है कि
बच्चा आगे जल्दी-जल्दी बीमार भी नहीं पड़ता।
बात दो वर्ष पूर्व की है।
दिव्य चिकित्सा भवन परिसर पनगरा
(बाँदा) में चल रहे आयुर्वेद नर्सिंग कॉलेज की एक छात्रा रामकान्ति को अक्टूबर माह
में प्रसव हुआ। प्रसव के ३ माह पश्चात्
रामकान्ति अपने पुत्र को अपनी माँ और पति की देखभाल में छोड़कर आयुर्वेद नर्सिंग
प्रशिक्षण में चली आयी। कुछ दिनों बाद बच्चा बीमार होने लगा। बच्चे को अतिसार और
ज्वर हुआ उन्होंने एलोपैथिक इलाज कराना शुरू किया जिससे अस्थायी आराम लग जाता पर
कुछ दिन में ही फिर अतिसार होने लगता। अतिसार के चलते बच्चे का विकास रुक गया।
२८ सप्ताह पश्चात् जिस
बच्चे को किसी वस्तु को देखकर झपटने का यत्न करना, सिर को सीधे उठाना, बिस्तर पर उलट जाना, सहारे से थोड़ी देर बैठना, सहारे से पैरों पर खड़ा होना, आगे बढ़ने का यत्न करना, एक हाथ से दूसरे हाथ में पदार्थ को बदल लेना पापा, नाना, मामा आदि शब्दों को बोलना, माँ को अधिक चाहना, दर्पण देखकर
खुश होना आदि में वृद्धि होनी चाहिए थी, वह वृद्धि होना तो दूर बच्चा अतिसार, ज्वर, अपच से ही मुक्त नहीं हो पा रहा था तो पोषण कैसे होगा। डॉक्टर डायरिया रोधी
दवायें और कुछ विटामिन्स दे रहे थे पर सभी निष्फल। रामकान्ति इतने अच्छे परिवार की
और प्रसन्न मुद्रा में रहने वाली लड़की वह अब दुःखी रहने लगी। बिल्कुल सच लिख रहा
हूँ एक दिन वह लड़की मेरे पास आयी और हाथ जोड़कर अत्यन्त कातर स्वर से विलाप करती
हुयी कहने ली कि सर! मेरे बच्चे को बचा लीजिए। उसका विलाप देखकर मैं भी विह्वल हो
गया। मैंने आश्वस्त किया और विश्वास दिलाया कि चिन्ता न करो, बच्चा अवश्य रोगमुक्त होगा। मैंने जब बच्चे का निदान करना
शुरू किया तो पाया कि जो भी चिकित्सक उसे केवल दस्तरोधी (एण्टी डायरियल) दवा देते हुए
विटामिन्स, और पूरक आहार
आदि दे रहे थे वे बच्चे के साथ घोर अन्याय कर रहे थे।
हमने रोग
निदान कर निम्नांकित व्यवस्था पत्र विहित किया -
१. बालार्क रस केशर युक्त (सिद्ध योग संग्रह के मत से निर्मित) १२५
मि.ग्रा., रामबाण रस १२५ मि.ग्रा., बाल जीवन रस, (स्वानुभूत) १२५ मि.ग्रा., प्रवाल पंचामृत मुक्तायुक्त १२५ मि.ग्रा., बालचातुर्भद्र चूर्ण १२५ मि.ग्रा., संजीवनी वटी १२५ मि.ग्रा., जातीफल योग १ गोली सभी को घोंटकर ४ मात्रा। १-१ मात्रा दिन
में ३ बार शहद से चटाने का निर्देश दिया।
२. अरविन्दासव १-१ चम्मच बराबर जल मिलाकर दिन ३
बार।
आपको जानकर आश्चर्य होगा
कि उपर्युक्त चिकित्सा व्यवस्था से २४ घण्टे में ही दस्तों की मात्रा कम होने लगी।
एक सप्ताह में दस्त रुक गये। जब अतिसार बन्द हो गया तो बच्चे को पोषण मिलने लगा और
शारीरिक वृद्धि होने लगी।
इसके पश्चात् हमने
समय-समय पर बच्चे का परीक्षण कर रोग, रोगी, प्रकृति, सार, सात्म्य का ध्यान रखकर कई बार अलग-अलग चिकित्सा व्यवस्था
पत्र दिए। परिणाम यह है कि आज
रामकान्ति का वह बच्चा स्वस्थ रहकर निरन्तर शारीरिक और मानसिक विकास कर रहा है। पर
बच्चे के विकास में उस अवस्था का दुष्परिणाम स्पष्ट दिखाई दे रहा है जो उसने ६ माह
तक अतिसार को झेला और साथ में एलोपैथिक का प्रहार भी।
दरअसल यह कोई मेरा
चमत्कार नहीं है। सच तो यह है कि बच्चा
कुचिकित्सा के चंगुल में था।
इस रोग की चिकित्सा में सीधी सी बात यह थी कि -
संशम्यपा धातुरन्तः कृशानुं, वर्चोमिश्रो मारुतेन प्रणुन्नः।
वृद्धोऽतीवाधः सरत्येषयस्मात्, व्याधिं घोरं तं त्वतीसारमाहुः।।
सु.उ. ४०/६
के अनुसार, निदान सेवन के कारण शरीर की जलीय धातु का प्रकोप फिर वायु
प्रकोप फिर अग्नि की मन्दता वायु द्वारा प्रेरित होकर मल के साथ जलधातु का नीचे की
ओर सरण होना। यह ध्यान देने योग्य तथ्य है।
यह जानने योग्य तथ्य है
कि पाचकाग्नि या जाठराग्नि ही सबसे प्रमुख ‘अग्नि’ है यही अग्नि सभी अग्नियों पर अधिकार रखती है। यह महास्रोतस् में उपस्थित होकर
किए गये आहार के पाचन में सहायक होती है। जब तक आहार का पाचन नहीं होता तब तक उसका
शोषण, संवहन, धातुपाक एवं चयापचय संभव नहीं है। यदि पाचकाग्नि का व्यापार
बन्द हो जाए या मन्द पड़ जाय तो धात्वाग्नि और भूताग्नि का भी कार्य प्रभावित हो
जाता है। उपर्युक्त मामले में एलोपैथिक डॉक्टर जो भी कर रहे थे वह रोग के कारण पर
प्रहार न होकर केवल लक्षणों को दबाने का कार्य था जिससे बच्चे को उचित लाभ नहीं हो
रहा था। हमने उपर्युक्त जो चिकित्सा व्यवस्था पत्र लिखा वह जाठराग्नि व्यापार को
नियमित करते हुए वातशामक और स्तम्भक था परिणामत: रोग समाप्त करने वाला था जिसका
परिणाम दिखाई दिया।
बार-बार न्यूमोनिया से ग्रस्त हो रहे बच्चे की सफल
चिकित्साऽनुभव :
गत वर्ष दिसम्बर की बात
थी। रायपुर (छ.ग.) का एक गुप्ता परिवार अपने सम्पूर्ण परिवार के साथ पंचकर्म हेतु
दिव्य चिकित्सा भवन, पनगरा (बाँदा) में एक माह के लिए आया। इस परिवार में ३ वर्षीय बच्चा ‘रजत’ था। एक दिन
बच्चे को न्यूमोनिया का तीव्र आक्रमण हुआ। बच्चे की माँ और दादी बच्चे को लिए
दौड़ते हुए आयी और बोली सर! इस बच्चे को न्यूमोनिया हो गया, हम इसे एलोपैथ के बाल्य रोग विशेषज्ञ को दिखाने ले जाना
चाहते हैं। हमने बच्चे को देखा और केस हिस्ट्री ली, तो बच्चे के पिता ने बताया कि २०१० में रजत को बुखार हो गया, उसे धमतरी के क्रिश्चियन हास्पिटल के चीफ और चाइल्ड
स्पेशलिस्ट को दिखाया, उन्होंने कुछ
जाँचें करायीं और रिपोर्ट आने पर उन्होंने बताया कि बच्चे को न्यूमोनिया और अस्थमा
हो गया है। उन्होंने बच्चे को ठंड में विशेष सतर्क रहने की सलाह दी और कहा कि शायद अस्थमा जीवन भर रहे।
एलोपैथिक दवा खाते-खाते रजत में मानसिक बदलाव दिखाई देने लगा जहाँ पहले वह आम
बच्चों की तरह खेलता कूदता रहता था
वहीं उसमें अब चिड़चिड़ापन आने लगा। रजत का परीक्षण किया गया तो पाया गया कि उसे उत्फुल्लिका
रोग की तीव्र अवस्था थी
अतः हमने तुरन्त निम्नांकित चिकित्सा व्यवस्था विहित किया-
१. प्राणवहस्रोतसदुष्टिहर रसायन १२५ मि.ग्रा. (डॉ.
अर्चना वाजपेयी द्वारा निर्मित), मुक्ता भस्म (नम्बर-१.) १२५ मि.ग्रा., बाल जीवन रस १२५ मि.ग्रा., नागार्जुननाभ्र रस १२५ मि.ग्रा. सभी को घोंटकर ४ मात्रा।
१-१ मात्रा दिन में २ बार शहद से चटाने का निर्देश।
२. कनकासव १ चम्मच, भाग्र्यादि कषाय १ चम्मच मिलाकर दिन में २ बार।
‘अग्निना
स्वेदयेद्वापि...।’ के अनुसार लवणबालुका पोटली बनाकर दिन में २ बार स्वेदन
कराया।
औषधि सेवन कराने के ३०
मिनट पश्चात् ही व्याधि का बल घटने लगा और बच्चे का बल बढ़ने लगा। २४ घण्टे में रोग
का वेग ७० प्रतिशत घट गया और ७२ घण्टे में शतप्रतिशत बच्चा ठीक हो गया। बच्चे में
उत्साह, प्रसन्नता थी, चिड़चिड़ापन समाप्त था।
जैसा कि हमने लेख के
प्रारम्भ में लिखा है कि लगभग १००० वर्ष से आयुर्वेद में तत्त्वज्ञों की कमी आती
गयी, आयुर्वेद
धीरे-धीरे फायदा करता है ऐसा कहने वालों की संख्या बढ़ती गयी।
भारत सरकार की एक रिपोर्ट
के अनुसार न्यूमोनिया से हर भारत के १८.४ लाख बच्चे मौत के मुँह में समा जाते हैं, यदि भारत सरकार उत्तम चिकित्सकों की नियुक्ति कर न्यूमोनिया
ग्रस्त बच्चों का उपचार केवल आयुर्वेद से कराये तो निश्चित् रूप से यह मृत्युदर ०
प्रतिशत हो जाएगी।
योगरत्नाकर
कार ने बाल रोग चिकित्सा प्रकरण में लिखा है-
आध्मानवातसम्फुल्ली दक्षकुक्षौ शिशोर्भवेत्।
उत्फुल्लिका सा विख्याता श्वासश्वयथुसंकुला।।
तदनुसार इस रोग के
सम्प्राप्ति घटक इस प्रकार बनते हैं- निदान सेवन ➡️ त्रिदोष प्रकोप ➡️ आमाशय में
दोष संचय ➡️ कोष्ठाग्नि मन्दता ➡️ आमोत्पत्ति ➡️ रसवह, प्राणवहस्रोतोरोध ➡️ श्वसनीशोथ ➡️ वायु प्रतिलोम ➡️ उत्फुल्लिका
(Pneumonia)।
उपर्युक्त चिकित्सा
व्यवस्था जो हमने विहित की उसने वायु का अनुलोम करते हुए अग्निमांद्य को नष्ट कर, आम का पाचन किया, परिणामतः रसवह, प्राणवह स्रोतोरोध समाप्त हुआ, दोष संचय विलीन होता गया और उत्फुल्लिका (Pneumonia) रोग नष्ट हो गया।
इस प्रकार हमें प्रतिवर्ष
अनेकों न्यूमोनिया ग्रस्त बच्चों की चिकित्सा करने का अवसर मिलता है और सदैव सफलता
मिलती है।
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी एक प्रख्यात आयुर्वेद विशेषज्ञ हैं। शास्त्रीय चिकित्सा के पीयूष पाणि चिकित्सक और हार्ट, किडनी, शिरोरोग (त्रिमर्म), रीढ़ की चिकित्सा के महान आचार्य जो विगड़े से विगड़े हार्ट, रीढ़, किडनी, शिरोरोगों को शास्त्रीय चिकित्सा से सम्हाल लेते हैं । आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूटधाम, दिव्य चिकित्सा भवन, आयुष ग्राम मासिक, चिकित्सा पल्लव और अनेकों संस्थाओं के संस्थापक ।
इनके शिष्यों, छात्र, छात्राओं की लम्बी सूची है । आपकी चिकित्सा व्यवस्था को देश के आयुष चिकित्सक अनुशरण करते हैं ।
रोगः सर्वेsपि जायन्ते वेगोदीरणधारणे: ।।
मल, मूत्र आदि के वेगों को रोकने तथा इन वेगों को प्रयत्न पूर्वक उभाड़ने से सभी रोगों की उत्पत्ति होती है ।।
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डॉ. अर्चना वाजपेयी
डॉ. अर्चना वाजपेयी एम.डी. (मेडिसिन आयु.) में हैं आप स्त्री – पुरुषों के जीर्ण, जटिल रोगों की चिकित्सा में विशेष कुशल हैं । मृदुभाषी, रोगी के प्रति करुणा रखकर चिकित्सा करना उनकी विशिष्ट शैली है । लेखन, अध्ययन, व्याख्यान, उनकी हॉबी है । आयुर्वेद संहिता ग्रंथों में उनकी विशेष रूचि है ।
सरकार आयुष को बढ़ाये मानव का जीवन बचाये!!
सरकार को फिर से भारत में अंग्रेजी अस्पताल और अंग्रेजी मेडिकल कॉलेजों की जगह अच्छे और समृद्ध आयुष संस्थान खोलने चाहिए तथा उनसे पूरी क्षमता से कार्य लेना चाहिए। इससे भारत का मानव हार्ट के ऑपरेशन, छेड़छाड़ स्टेंट और डायलिसिस जैसी स्थितियों से बचकर और हार्ट को स्वस्थ रख सकेगा। क्योंकि हार्ट के रोगी पहले भी होते थे आज भी होते हैं और आगे भी होते रहेंगे। जिनका सर्वोच्च समाधान आयुष में है। आयुष ग्राम चित्रकूट एक ऐसा आयुष संस्थान है जहाँ ऐसे-ऐसे रस-रसायनों/ औषध कल्पों का निर्माण और संयोजन करके रखा गया है जो जीवनदान देते हैं। पंचकर्म की व्यवस्था एम.डी. डॉक्टरों के निर्देशन में हो रही है, पेया, विलेपी, यवागू आदि आहार कल्पों की भी पूरी उपलब्धता है इसलिये यहाँ के ऐसे चमत्कारिक परिणाम आते हैं।
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आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
आयुष ग्राम चिकित्सालय:, चित्रकूट
आयुष ग्राम चिकित्सालय:, चित्रकूट
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.) एन.डी., साहित्यायुर्वेदरत्न,विद्यावारिधि (आयुर्वेद), एम.ए.(दर्शन),एम.ए.(संस्कृत )
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
डॉ परमानन्द वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य
डॉ आर.एस. शुक्ल आयुर्वेदाचार्य
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