१७ नवम्बर २०१९
को प्रात: ७:२८ पर सोशल मीडिया पर एक खबर दौड़ गयी कि एक राजकीय मेडिकल कॉलेज में
एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई कर रहे लड़कियाँ और लड़के खुलेआम स्टेडियम परिसर में शराब ठोक
रहे थे। उसी मेडिकल कॉलेज के एक सर्जन डॉक्टर मनोज जो भर्ती मरीजों में राउण्ड लगा
रहे थे वे खुद शराब के नशे में थे। टिप्पणी करने वालों ने तो यहाँ तक लिख दिया कि
यह कोई पब/बार है या मेडिकल संस्थान? इस खबर पर टिप्पणी
करते हुये सम्भल मुरादाबाद के डॉ. संजय गुप्ता ने लिखा कि सरकारी मेडिकल कॉलेज के
हालातों से बदतर प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं जहाँ माँ-बाप को एम.बी.बी.एस की पढ़ाई
का खर्चा १ से १.५ करोड़ पड़ता है। वहाँ की पढ़ाई लगभग न के बराबर जबकि चरित्रहीनता
प्रत्येक दिशा में चरम पर होती है। एम.बी.बी.एस करने वाले इन स्टूडेण्ट्स को
रोगियों की पॉकेट काटने का विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है।
क्या समाज के लिये
यह शोचनीय स्थिति नहीं है कि जिस भारत में भारत के गुरुकुलों द्वारा चिकित्सक का
ऐसा चरित्र निर्मित किया जाता था कि उसे भारत में सचिव और गुरु के बराबर का दर्जा
दिया जाता था और उसे निर्णायक भूमिकाकार माना जाता था।
‘‘सचिव वैद्य गुरु तीन जो प्रिय बोलहिं भय आस।
राजधर्म अरु देहकर होइ बेगहिं नास।।’’
रामचरित मानस।
आज वही वर्ग दारू
के आगोश में डूबा है और ये वैज्ञानिक शोधों से प्रमाणित हो चुका है कि दारूसेवी
व्यक्ति में ममता, करुणा, दया आदि मानवीय
गुणों का अभाव हो जाता है। इसीलिये अंग्रेजी चिकित्सक वर्ग के कारण आने वाला समय
बहुत ही भयावह है और यह देश में मैकाले शिक्षा का दुष्परिणाम है। महान् चिकित्सा
वैज्ञानिक वाग्भट्टाचार्य ने भारत के चिकित्सक का कितना सुन्दर चरित्र और
महत्वपूर्ण दायित्व बताया है-
श्रुत चरितसमृद्धे कर्मदक्षे दयालौ,
भिषजि निरनुबन्धं देहरक्षां निवेश्य।
भवति विपुलतेज: स्वास्थ्यकीर्तिप्रभाव:
स्वकुशल फलभोगी भूमिपालश्चिरायु:।।
अ.हृ. सूत्र ७/७७।।
अर्थात् देश के
शासक को चाहिये कि अपने देश में ऐसा चिकित्सक वर्ग रखें जो शास्त्र का ज्ञाता, चरित्रवान्, चिकित्सा कार्य
में कुशल, दया भावयुक्त हो।
फिर वह अपने शारीरिक स्वास्थ्य रक्षा का भार ऐसे गुणवान् चिकित्सक पर डालकर प्रजा
का पालन करें। जिस देश में ऐसे चरित्रवान् और शास्त्रज्ञ चिकित्सक होंगे तो उस देश
का शासक (राजा/गृहस्वामी) अत्यन्त तेजस्वी, निरोग, कीर्तिमान्, प्रभावशाली, दीर्घायु होगा तथा जीवन के उद्देश्यों की ओर बढ़ता ही
जायेगा।
भले ही
वाग्भट्टाचार्य ने यह बात १५०० साल पहले लिखी हो पर इसका उदाहरण हमारे सामने देश
के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी हैं वे आयुर्वेदीय परम्परा ही से अपने मानसिक और
शारीरिक स्वास्थ्य को ऐसा उन्नत किये हैं कि दुनिया में उन्हें ‘अवार्ड’ मिल रहे हैं।
इसके पूर्व के जो-जो प्रधानमंत्री दारूखोर चिकित्सकों को अपने सेहत का भार सौंपें
रहे हैं उनकी कार्यक्षमता और मोदी जी की कार्यक्षतमा की तुलना दुनिया कर रही है।
किन्तु देश को
आदर्श चिकित्सक तभी मिल सकते हैं जब आदर्श गुरुकुलों से प्रारम्भिक और माध्यमिक
शिक्षा और संस्कार लेकर युवक चिकित्सा महाविद्यालयों में पहँचेंगे उनमें गलत को
गलत और सही को सही कहने का सामर्थ्य होगा और उनमें गलत का विरोध करने का मनोबल
होगा ऐसे युवक भेंडों की भीड़ बनने से स्वयं बचेंगे तथा समाज को बचायेंगे।
डॉ. मदन
गोपाल वाजपेयी
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी एक प्रख्यात आयुर्वेद विशेषज्ञ हैं। शास्त्रीय चिकित्सा के पीयूष पाणि चिकित्सक
और हार्ट, किडनी, शिरोरोग (त्रिमर्म), रीढ़ की चिकित्सा के महान आचार्य जो विगड़े से
विगड़े हार्ट, रीढ़, किडनी, शिरोरोगों को शास्त्रीय चिकित्सा से सम्हाल लेते हैं । आयुष
ग्राम ट्रस्ट चित्रकूटधाम, दिव्य चिकित्सा भवन, आयुष ग्राम मासिक, चिकित्सा पल्लव
और अनेकों संस्थाओं के संस्थापक ।
इनके शिष्यों, छात्र, छात्राओं की लम्बी सूची
है । आपकी चिकित्सा व्यवस्था को देश के आयुष चिकित्सक अनुशरण करते हैं ।
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