भारत की प्राचीन आयुष कार्डियोलॉजी (हृदयरोग चिकित्सा विज्ञान) इतना समृद्ध, प्रभावशाली और सफल है कि ७०,९० और ९९ प्रतिशत धमनी प्रतिचय (ब्लॉकेज) वालों को भी
एंजियोप्लास्टी (स्टेंट) और बाईपास सर्जरी से बचा लेती है। भारत की यह प्राचीन
चिकित्सा विज्ञान आयुष कार्डियोलॉजी केवल बाईपास सर्जरी से ही नहीं बचा लेती बल्कि
रोगी को उत्साह युक्त, सक्षम, सफल और काम करने योग्य बना देती है। यह एक-दो नहीं लगातार
सैकड़ों, हजारों की
संख्या में प्रमाण आ रहे हैं।
किन्तु भारत का दुर्भाग्य
है कि विदेशी शासकों ने इतने महत्वपूर्ण भारत के महान् चिकित्सा विज्ञान को भारत
में आगे नहीं बढ़ने दिया, आजादी के बाद
भी सरकारें इसी गुलामी में फँसी रहीं और उन्होंने भारत के इस महान् चिकित्सा
विज्ञान को आगे नहीं बढ़ने दिया ताकि भारत के लोग स्टेंट व बाईपास सर्जरी से बच सकें
बल्कि इसी विदेशी पद्धति का ही प्रसार किया गया। लोक कल्याण
के लिए प्रभु श्रीराम की तपोभूमि में स्थापित ‘आयुष ग्राम (ट्रस्ट)’ ने इस भारतीय चिकित्सा विज्ञान पर आधारित हार्ट की चिकित्सा
पर बड़ी तेजी से काम किया। एम.डी. स्तर के डॉक्टरों ने इस दिशा में अध्ययन और
प्रयोगाऽनुभव किया जिसके परिणाम बहुत ही सकारात्मक आ रहे हैं और हृदय रोगी बिना
सर्जरी निरोग हो रहे हैं। ७०,९० और ९९ प्रतिशत ब्लॉकेज वाले निरोग हो रहे हैं जिनकी बाईपास सर्जरी या
स्टेंट भी कर दी गयी है तो वे भी अच्छा जीवन यहाँ से पा रहे हैं।
३१ अक्टूबर २०१८ को आयुष
ग्राम (ट्रस्ट), चित्रकूट की आयुष कार्डियोलॉजी में ३१ अक्टूबर २०१८ को जिला न्यायालय के पेशकार (रीडर)
पद से सेवानिवृत्त, लाल जी सरोज उम्र ६२ वर्ष को लेकर उनके बेटे और पत्नी आयुष
ग्राम (ट्रस्ट), चित्रकूट की आयुष कार्डियोलॉजी में आये। उनका ओपीडी रजिस्ट्रेशन नम्बर ३४/२०४० हुआ। अपना
क्रम आने पर ओपीडी नम्बर-२ पर आये, साथ में उनके परिवारी जन भी थे। उनकी केसहिस्ट्री ली गयी तो
बताया कि -
⇨ २२ सितम्बर २०१८ को अचानक सीने में दर्द हुआ तो दीनदयाल
चिकित्सालय वाराणसी ले गये, वहाँ से बीएचयू रिफर कर दिया गया।
⇨ बीएचयू के डॉक्टरों ने
जाँच के बाद बताया कि हार्ट अटैक हुआ है। मुझे दवा लिखी गयी, दवा लेकर घर आ गया।
⇨ घर आने के दो दिन बाद फिर
छाती में दर्द, घबराहट शुरू हो गयी, तो घर वाले मुझे सुधा नर्सिंग होम गये, वहाँ ईसीजी, ईको फिर एंजियोग्राफी हुयी। रिपोर्ट में- ‘Triple Vessel CAD’ की आयी। एक धमनी में ९० प्रतिशत, एक में ७० प्रतिशत, एक में ९९ प्रतिशत ब्लॉकेज (अवरोध) पाया गया। इसके कारण से
साँस फूलना, सीने में दर्द और सारी समस्यायें हैं।
⇨ डॉक्टरों ने बाईपास
सर्जरी कराने के लिये लखनऊ रिफर कर दिया था पर हम बाईपास सर्जरी नहीं चाहते थे
क्योंकि बाईपास सर्जरी के कुछ सालों बाद फिर वही दशा हो जाती है।
⇨ केसहिस्ट्री के दौरान पता
चला कि श्री लाल जी पिछले ४० सालों से अजीर्ण/अनाह से पीड़ित रहे जिसे वह ‘कब्ज’ कहते थे। रोगी की प्रकृति वात पित्तज, विकृति रस, अग्नि, सार अस्थि, आहार शक्ति और व्यायाम शक्ति मध्यम, व्यसन में चाय और सुपाड़ी थी, जिह्वा-अर्धसाम थी।
अब हृदय रोग (‘Triple Vessel CAD’) होने के मूल कारण तक जानने के लिए रोग की सम्प्राप्ति घटकों
और सम्प्राप्ति पर विचार किया गया। क्योंकि रोग बहुत ही चुनौतीपूर्ण था किन्तु
रोगी को हार्ट के ऑपरेशन से बचाना भी था।
रोग के मूल कारण पर जब
खोज की गयी तो पाया गया कि श्री लाल जी में हृदय रोग का बीज कई सालों पहले पड़ गया
था। पर अज्ञानता, लापरवाही के
कारण उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया। दुनिया के प्रथम शल्य वैज्ञानिक आचार्य सुश्रुत
क्षेत्रवाद व बीजवाद पर बहुत सुन्दर ढंग से लिखते हैं-
देवे
वर्षत्यापि यथा भूमौ बीजानि कानिचित्।
शरदि
प्रतिरोहन्ति तथा व्याधि समुद्भव:।।
(सु.उ.
६/२०)
अर्थात् पृथ्वी के अन्दर कुछ पड़े
हुये बीज वर्षा ऋतु में बादलों के बरसने पर शरद ऋतु में अंकुरित हो जाते हैं, इसी
प्रकार शरीर में व्याधियों के बीजभूत के रहने पर जब निश्चित काल व अंकुरण हेतु अनुकूल
वातावरण प्राप्त होता है तब रोग उत्पन्न होता है।
श्री लाल जी जो ४० साल से
‘अजीर्ण’ की शिकायत थी जिसे वह ‘कब्ज’ कहते थे वहीं से हृदय रोग की नींव पड़ गयी थी। क्योंकि यह
जानने योग्य तथ्य है कि अजीर्ण के सामान्य लक्षणों में विष्टब्धता (मल या अन्न
का उदर में रुका रहना अथवा उचित रूप से बाहर नहीं निकलना), अंगसाद (looseness of body), शिर दर्द, चक्कर आना, अरुचि और अपचन होता है।
‘‘तस्य
लिङ्गमजीर्णस्य विष्टम्भ: सदनं तथा।
शिरसो रुक्
च मूच्र्छा च भ्रम: पृष्ठ कटिग्रह:।।
जृम्भाऽङ्गमर्दस्तृष्णा
च ज्वरश्छर्दि: प्रवाहणम्।
अरोचकोऽविपाकश्च
घोरमन्नविषं च तत्।।’’
च.चि.
१५/४५-४६।।
अजीर्ण में जो
विष्टब्धाजीर्ण होता है तो उसमें आमाशय में ‘वायु’ की अधिकता होती है जिससे अग्नि की विषमता होती है परिणामत: भोजन का उचित
परिपाक नहीं होता उसमें- विष्टब्धमनिलाच्छूल
विबन्धाध्मानसादकृता।। अ.हृ.सू.
८/२६।। होता है।
अर्थात् शूल, विबन्ध (constipation), आध्मान (Flatulance) शरीर में दर्द मल और
अधोवायु की अप्रवृत्ति होती है।
अजीर्ण व्याधि ऐसी है कि
जिसका सही उपचार यदि प्रारम्भिक अवस्था में किया जाय तो साध्य (Curable) है किन्तु
धीरे-धीरे यह कठिन होती जाती है यदि व्यक्ति में इस रोग के सभी उपद्रव उत्पन्न हो
जायें तो यह असाध्य हो जाती है। किन्तु आज स्थिति यह हो गयी है कि अजीर्ण से
ग्रस्त तो अधिकांश होते हैं पर उसकी चिकित्सा इन अंग्रेजी डॉक्टरों ने एसिलॉक और
पेन-४० तक सीमित कर दिया है यही कारण है कि बीमारी मिट नहीं पाती और आगे नये-नये
रोग पैदा होने लगते हैं।
अजीर्ण होने पर आनाह और
आध्मान के लक्षण पैदा होते हैं जो धीरे-धीरे किन्तु सीधे हार्ट रोगी बनाते हैं-
‘‘हृत्स्तम्भमूर्धामयगौरवाभ्यामुद्गारसङ्गेन
सपीनसेन् ।।’’
च.चि.
२६/२६।।
यहाँ पर एक महत्वपूर्ण
तथ्य का उल्लेख करना हम आवश्यक समझते हैं कि यदि अजीर्ण (Indigation) की स्थिति चल रही है और इसके बावजूद भी कड़वे (मिर्च, मसाला) तीखे (करेला आदि) कषैले (चाय-कॉफी) का सेवन करते
रहते हैं, मल, मूत्र, अपानवायु, छींक, डकार आदि के वेगों को रोकते हैं, ब्रेड, बिस्किट आदि रूखे-सूखे पदार्थों को खाते रहते हैं, भूखे पेट बहुत रहते हैं और अधिक मैथुन करते हैं तो ऐसे आचरण
आनाह (Constipation) और आध्मान को बढ़ाते जाते हैं।
इस प्रकार श्री लाल जी
सरोज में रोग की सम्प्राप्ति इस प्रकार निर्मित हुयी-
दूषित जीवनशैली + मानसिक कारण ⇨ कफ प्रधान त्रिदोष प्रकोप ⇨ कायाग्नि (रोग प्रतिरोधक क्षमता, पाचन क्षमता तथा रसधातु का दूषित होना ⇨ अग्निमन्दता ⇨ सामरस का निर्माण ⇨ अन्नवह स्रोतस ⇨ संग प्रकार की स्रोतोदुष्टि ⇨ अनाह ⇨ वायु
द्वारा मल मार्ग का अवरोधक ⇨ धमनी प्रतिचय (Obstruction of arteries), उर:शूल ⇨ हृद्रोग (वातिक हृद्रोग)।
आधुनिक जाँचों से स्पष्ट
हो गया था कि तीन-तीन धमनियों में अवरोध (ब्लॉकेज) हो गया है अत: रोग असाध्य तो
नहीं पर कृच्छ्रसाध्य अवश्य हो गया है। पर रोगी में इतना आत्मबल था जिससे यह
निश्चित था उसे लाभ मिलना ही है और बाईपास सर्जरी से उसे बचना ही है।
यहाँ पर चिकित्सा
करते समय आचार्य चरक ने बहुत ही सुन्दर सूत्र दिखा है कि-
तत्र
प्रधानो व्याधि:, व्याधेर्गुणभूत उपद्रव:, तस्य
प्राय: प्रधानप्रशमे प्रशमो भवति।
सतु
पीडाकरतरो भविति पश्चादुत्पद्यमानो व्याधिपरिक्लिष्ट शरीरत्वात् तस्मादुपद्रवं
त्वरमाणोऽभिबाधेत।।
च.चि.
२१/४०।।
अर्थात् रोग मुख्य होता
है और उसी रोग के अप्रधान भूत ‘उपद्रव’ (Complication) होते हैं। मुख्य रोग के
शान्त हो जाने पर अप्रधान उपद्रव की शान्ति स्वयं ही हो जाती है। यह उपद्रव शरीर
में अधिक पीड़ा दायक होता है, क्योंकि प्रधान रोग द्वारा शरीर जर्जरित हो जाता है तो शरीर के दुर्बल हो जाने
पर जो भी उपद्रव होते हैं वह कष्टकारी होते हैं इसलिए उपद्रवों की चिकित्सा
शीघ्रता से करनी चाहिए।
इसी निर्देश के अनुसार आयुष
ग्राम चित्रकूट संस्थान में चिकित्सा के समय ध्यान रखा गया कि हार्ट अटैक न
होने पाये और छाती में कष्टप्रद दर्द न होने पाये। इसके लिए-
⇨ षट्पल घृतम् ५,१०,१५,२०,२५ ग्राम वृद्धिक्रम में सेवन। अनुपान में गरम जल का सेवन।
⇨ सप्तसार कषाय घनसत्व ५०० मि.ग्रा., मृगांक वटी १ गोली, शृंगभस्म २५० मि.ग्रा. और गोरोचनादि वटी १ गोली मिलाकर
सुबह-शाम गरम पानी से।
⇨ हृद् बस्ति और शिरोधारा।
इस चिकित्सा से श्री लाल
जी सरोज का छाती का दर्द, वह कमजोरी
दूर होने लगी जो अंग्रेजी चिकित्सा से बढ़ती जा रही है। एक सप्ताह उपर्युक्त
चिकित्सा देने के उपरान्त निम्नांकित चिकित्सा दी गयी-
⇨ कुलत्थादि कषाय, सेन्धा नमक, मधु मिलाकर निरूह बस्ति।
⇨ सर्वांगधारा, महानारायण तैल से।
⇨ औषधि व्यवस्था में- रत्नेश्वर रस १२५ मि.ग्रा. याकूती रसायन
गुलाब जल की २१ भावना युक्त ६५ मि.ग्रा., इन्दुकान्त घनसत्व १ ग्राम और पंचामृत पर्पटी १२५ मि.ग्रा.
मिलाकर १²२ शहद के अनुपान से।
⇨ द्राक्षारिष्ट २० मि.ली. बराबर जल मिलाकर भोजनोपरान्त।
⇨ रात में सोते समय- चिरबिल्व कषाय २० मि.लि. उबालकर ठण्डा
किया जल समभाग मिलाकर।
⇨ पथ्याहार में- मूँग की दाल पतली, रोटी, माड़ निकाला भात, सब्जी (लौकी, परवल, तुरई) अदरख की चटनी।
यह चिकित्सा कफ प्रधान
त्रिदोष शामक, रोगप्रतिरोधक
क्षमता वर्धक, अग्निवर्धक, आमनाशक स्रोतोरोध नाशक (अवरोध नाशक), वायु अनुलोमक, क्षुधावर्धक थी।
इस चिकित्सा से पहले माह
ही श्री लाल जी की अंग्रेजी दवायें बन्द हो गयीं श्री लाल जी कहने लगे कि ऐसा लगता
है कि डॉक्टर ने डरवा दिया था, मुझे कोई ब्लॉकेज ही नहीं है। हम मुस्कराये कि ब्लॉकेज तो हैं पर आयुष
कार्डियोलॉजी की पद्धति ही इतनी प्रभावशाली है।
१० माह की चिकित्सा के
बाद उनकी दवायें बहुत कम कर दी गयीं और वे आराम से अपने सारे काम-धाम करते हैं, कई सारी समस्यायें दूर हो गयीं। हमने कई बार उन्हें फिर से
एंजियोग्राफी, इको कराने की
सलाह दी पर श्री लाल जी सरोज कहते हैं कि मुझे स्वयं जब ऐसा लग रहा है कि मैं
निरोग हूँ तो यह मेरी सबसे बड़ी जाँच है। श्री लाल जी सरोज चूँकि जिला न्यायालय के
पेशकार पद से रिटायर्ड हैं इसलिए उनसे सर्व सामान्य की जानकारी हेतु अपने विचार
व्यक्त करने को कहा गया। उन्होंने अपने विचार इस प्रकार दिये-
७०,९० और ९९
प्रतिशत ब्लॉकेज में भी आयुष कार्डियोलॉजी ने बचा लिया बाईपास सर्जरी से!!
![]() |
लाल जी सरोज जी (स्वस्थ अवस्था में) |
मैं डिस्ट्रिक्ट जज के
पेशकार (रीडर) पद से रिटायर हूँ। २२ सितम्बर २०१८ में सीने में दर्द हुआ और २३ की
सुबह मुझे हार्ट अटैक आ गया। मेरे परिवार के लोग मुझे दीनदयाल चिकित्सालय वाराणसी
ले गये, वहाँ पर
जाँचें हुयीं और मुझे बीएचयू के लिए रिफर कर दिया।
मुझे बीएचयू ले जाया गया, बीएचयू में डॉक्टरों ने जाँचें करवायीं तथा बताया कि मुझे
हार्ट अटैक हुआ था, वहाँ से दवा
लेकर मैं घर आ गया और दुबारा १ सप्ताह के बाद फिर दिखाने को कहा गया। किन्तु मेरे
घर पहुँचने के दो दिन बाद फिर घबराहट और सीने में दर्द होने लगा। तब मैं बनारस के
सुधा नर्सिंग चिकित्सालय में डॉ. अजय सिंह कार्डियोलॉजिस्ट को दिखाया, जहाँ पर ईसीजी व ईको हुआ, एंजियोग्राफी हुयी इस प्रकार तीन ब्लॉकेज बताये ७० %, ९० %, ९९ % और तुरन्त बाईपास सर्जरी
के लिए कह दिया तथा पीजीआई लखनऊ के लिए रिफर कर दिया। हमारा पूरा परिवार परेशान था
कि बाबू जी अभी रिटायर हुये हैं और क्या हो रहा है, परिवार के लोग लखनऊ की तैयारी कर रहे थे, तभी जौनपुर के एक डॉक्टर मित्र जो अपना हार्ट का इलाज आयुष
ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट की आयुष कार्डियोलॉजी में करा रहे थे यहाँ का पता दिया।
मैं ३१ अक्टूबर २०१८ को आयुष
ग्राम चित्रकूट आया। मेरा रजिस्ट्रेशन नम्बर- ३४/१२०४० हुआ। नम्बर आने पर
ओपीडी में बुलाया गया, डॉक्टर साहब
ने बहुत ही अच्छे ढंग से हमें समझाया और बोले के आप बिल्कुल परेशान न हों अब हम
आपको हार्ट अटैक नहीं होने देंगे, घबराने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। बिल्कुल ऐसा ही हुआ, मुझे जैसी सलाह दी गयी वैसा मैंने किया। जिससे पहले माह से
ही आराम मिलना शुरू हो गया। पहले माह से ही मेरी अंग्रेजी दवायें भी कम हो गयीं।
मुझे यहाँ पर इलाज करवाते १० माह हो गये हैं अब तो आयुष ग्राम चित्रकूट की
भी दवा बन्द होने को हैं सिर्फ नाममात्र की
दवा चल रही हैं। इस समय कोई भी दिक्कत नहीं है। सिर्फ पेट में गैस
की हल्की समस्या होती है।
आप विश्वास करें हमारा
पूरा परिवार बहुत खुश है, पहली बात तो
मेरे अन्दर का डर कि कभी हार्ट अटैक न आ जाये वह मिट गया, मेरी अंग्रेजी दवायें बन्द हो गयीं मुझे कोई ऑपरेशन नहीं
करवाना पड़ा और अब मैं ९५ % स्वस्थ हूँ, वह भी बिना हार्ट ऑपरेशन और स्टेंट के। केवल दवाओं और
चिकित्सा से। मैं तो अन्त में कहना चाहता हूँ कि आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट के
डॉक्टरों ने बिना ऑपरेशन हार्ट की चिकित्सा की जो खोज की है उसमें जितनी ताकत है
उतनी एलोपैथ में नहीं। मैं संस्थान के सभी डॉक्टरों और पूरे स्टॉफ को भी धन्यवाद
देता हूँ।
लाल जी सरोज
सेवानिवृत्त
रीडर (जिला जज न्यायालय)
दबेथुआ
(कठिराँव), वाराणसी (उ.प्र.)
न कञ्चिदात्मनः शत्रुं नात्मानं कस्याचिद्रिपुम।।
अ.हृ.सू. २/२७
न अपने को किसी का शत्रु बनाएं न
दूसरे को अपना शत्रु बतलायें ।।
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डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी एक प्रख्यात आयुर्वेद विशेषज्ञ हैं। शास्त्रीय चिकित्सा के पीयूष पाणि चिकित्सक और हार्ट, किडनी, शिरोरोग (त्रिमर्म), रीढ़ की चिकित्सा के महान आचार्य जो विगड़े से विगड़े हार्ट, रीढ़, किडनी, शिरोरोगों को शास्त्रीय चिकित्सा से सम्हाल लेते हैं । आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूटधाम, दिव्य चिकित्सा भवन, आयुष ग्राम मासिक, चिकित्सा पल्लव और अनेकों संस्थाओं के संस्थापक ।
इनके शिष्यों, छात्र, छात्राओं की लम्बी सूची है । आपकी चिकित्सा व्यवस्था को देश के आयुष चिकित्सक अनुशरण करते हैं ।
डॉ. अर्चना वाजपेयी
डॉ. अर्चना वाजपेयी एम.डी. (मेडिसिन आयु.) में हैं आप स्त्री – पुरुषों के जीर्ण, जटिल रोगों की चिकित्सा में विशेष कुशल हैं । मृदुभाषी, रोगी के प्रति करुणा रखकर चिकित्सा करना उनकी विशिष्ट शैली है । लेखन, अध्ययन, व्याख्यान, उनकी हॉबी है । आयुर्वेद संहिता ग्रंथों में उनकी विशेष रूचि है ।
आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
आयुष ग्राम चिकित्सालय:, चित्रकूट
आयुष ग्राम चिकित्सालय:, चित्रकूट
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.) एन.डी., साहित्यायुर्वेदरत्न,विद्यावारिधि (आयुर्वेद), एम.ए.(दर्शन),एम.ए.(संस्कृत )
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
डॉ परमानन्द वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य
डॉ आर.एस. शुक्ल आयुर्वेदाचार्य
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